Wednesday, March 9, 2011




अनेक जन्मों की साधना से संसिद्ध पुरुष ही श्रीमन्तों, देशिकों, योगियों के कुल में जन्म ग्रहण करता है। आचार्यपाद श्री पुरुषोत्तम जी महाराज ने श्री जगद् गुरु सुदर्शनाचार्य जी महाराज के यहाँ जन्म लेकर सिद्ध कर दिया कि आप अनेक पूर्वजन्मों की साधना के फलस्वरुप गुरुमाता के गर्भ से इस भूलोक में अवतरित हुए हैं । शैशवावस्था में ही आपका अद्भुत शेमुषी कौशल, प्रबल मेधा शक्ति नवनवोन्मेषवती प्रतिभा से परिजन आप में विलक्षणता के दर्शन कर आह्लादित होते थे । छात्रावस्था में कठिनतम विषयों को सहजरुप में ग्रहण करने की आपकी विलक्षण मेधा से गुरुजन अत्यन्त प्रभावित होते थे । गुरुओं को ऐसा प्रतीत होता था मानों विज्ञान जैसा कठिन विषय भी आपका पूर्व पठित हो । प्रत्येक कक्षा में श्रेष्ठतम श्रेणी से सफलता प्राप्त कर आपने एक कीर्तिमान स्थापित किया । गुरु महाराज के ज्येष्ठ पुत्र उत्तराधिकारी एवं शिष्य होने से अध्यात्मज्ञान एवं लोककल्याण के कार्यों में आपकी स्वाभाविक प्रवृति रही । संपूर्ण आश्रमों की पालना करने से गृहस्थाश्रम सभी आश्रमों में मूर्धन्य स्थान पर अवस्थित है । पितृऋण की मुक्ति के लिए आपने गृहस्थाश्रम में प्रवेश किया तथा भलीभाँति गृहस्थ धर्म का पालन किया ।

जैसा कि पूर्व में निर्दिष्ट किया गया है आप शैशवावस्था से ही धार्मिक क्रियाकलापों में सोत्साह भाग लेते थे ।

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